Review: 'अब तो बस भगवान भरोसे'
काफी समय बाद ऐसी कोई फिल्म देखने को मिली है, जिसमें बेहद गंभीर विषय को बेहद सरल तरीके से पेश किया गया है। हमारे समाज को ऐसी फिल्में बनाने और देखने वालों की जरूरत है।
फिल्म बहुत ही सरल तरीके से बताती है कि हमारा व्यवहार जाने अनजाने में बच्चों पर कैसे प्रभाव डालता है और वे कैसे कट्टर विचार धारा को अनुसरण करने लग जाते हैं। अभी समाज में जो कुछ हो रहा है, वह हमने अपने पीछे,अपने अतीत में जो किया है उसका परिणाम है और हम अब जो कर रहे हैं, वह आने वाली पीढ़ी ने सीखना है और वही निभाना है।
हमें पता होना चाहिए कि धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक अन्यायों से कैसे बचा जाए और उनके खिलाफ उचित तरीके से आवाज कैसे उठाई जाए। आपका यह व्यवहार एक इंसान होने के नाते आपका कर्तव्य भी है और यह आपके बच्चे के लिए अच्छी परवरिश भी है।
फिल्म जिस गति से चलती है शायद वही गति हम अपने जीवन में चाहते हैं। एक अच्छा मैसेज आपको बोर भी नहीं होने देता। गांव के लोगों की सादगी आपके चेहरे पर अपने आप मुस्कान ला देती है। आप खुद को उस समय के साथ बहुत आसानी से जोड़ लेते हैं। वे आपको टीवी पर महाभारत, रामायण और चित्रहार देखने के बचपन के दिनों में ले जाते हैं।
अभिनय की बात करें तो हर कलाकार की तारीफ बनती है। बाल कलाकारों का काम विशेष रूप से वर्णीय है। अंत में, इस प्रोजेक्ट में शामिल सभी लोगों को बधाई, जिन्होंने इतने सुंदर विषय पर इतनी बहादुरी से काम किया। यह फिल्म उन फिल्म निर्माताओं को भी देख लेनी चाहिए, जो नशे और नग्नता को बढ़ावा दे रहे हैं और कह रहे हैं कि हम वही दिखा रहे हैं जो समाज में हो रहा है। समाज में और भी बहुत कुछ चल रहा है, बस साहस, बहादुरी और सिनेमा के प्रति निष्ठा की जरूरत है।
धन्यवाद